नारायण..नारायण.. विष्णु जी के परम भक्त देवर्षि नारद
देवर्षि नारद मुनि तीनों लोकों पृथ्वी, आकाश और पाताल में यात्रा कर देवी-देवताओं और असुरों तक संदेश पहुंचाते थे, इन्हें संसार का पहला पत्रकार माना जाता है।
जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..
जनजागरुकता, धर्म डेस्क। विष्णु जी के परम भक्त हैं देवर्षि नारद जी। पौराणिक कथाओं के अनुसार अपने पूर्व जन्म में नारद 'उपबर्हण' नाम के गंधर्व थे। हर साल ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नारद जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस साल नारद जयंती 6 मई 2023 को थी।
देवऋषि नारद मुनि को विष्णु जी का परम भक्त माना गया है। देवर्षि नारद मुनि तीनों लोकों पृथ्वी, आकाश और पाताल में यात्रा कर देवी-देवताओं और असुरों तक संदेश पहुंचाते थे, इन्हें संसार का पहला पत्रकार माना जाता है। नारद जी एक ऐसे पौराणिक चरित्र हैं, जो तत्वज्ञान में परिपूर्ण हैं। कई शास्त्र इन्हें विष्णु का अवतार भी मानते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय के 26वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने नारदजी के लिए कहा है कि - #देवर्षीणाम् च नारद: -यानि मैं देवर्षियों में नारद हूं..
देवताओं के साथ असुरों का भी सही मार्गदर्शन किया
पौराणिक कथाओं के अनुसार नारद जी ने देवताओं के साथ ही असुरों का भी सही मार्गदर्शन किया। यही वजह है कि सभी लोकों में उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। देवर्षि नारद ऋषि वेदव्यास, वाल्मीकि, शुकदेव के गुरु थे। राजा अम्बरीष, प्रह्लाद, ध्रुव, जैसे महान भक्तों को नारद जी ने ज्ञान और प्रेरणा देकर भक्ति मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है।
अपरा भक्ति एवं परा भक्ति.. अर्थ
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अपरा भक्ति एवं परा भक्ति के बारे में बताया है, इसे ऐसे समझें.. स्वामी ब्रह्मविद्यानंद सरस्वती..
अपरा को निम्न भक्ति और परा भक्ति को उच्च भक्ति माना जाता है। अपरा भक्ति में, योगी ईश्वर की पूजा में कर्मकांडों, वस्तुओं, छवियों या समारोहों पर ध्यान केंद्रित करता है। परा भक्ति में, भक्ति दुनिया से ऊपर उठ जाती है, और योगी परमात्मा के साथ मिलन और जीवन-मृत्यु-पुनर्जन्म चक्र से मुक्ति के लिए प्रयास करता है।
अपरा भक्ति.. भक्ति योग पथ का प्रारंभिक चरण
दूसरे शब्दों में, अपरा भक्ति भक्ति योग पथ का प्रारंभिक चरण है। जैसे-जैसे योगी भक्ति की ओर बढ़ता है उसे अहंकार और इच्छा के आधार पर अनुष्ठानों की कोई आवश्यकता नहीं होती है, और इसलिए धीरे-धीरे परा भक्ति और सार्वभौमिक प्रेम में संक्रमण होता है।
भक्ति को आगे कई प्रकार की भक्ति में विभाजित किया गया है, जिनमें निम्न शामिल हैं..
1. सकाम भक्ति- भौतिक या भावनात्मक लाभ की आशा के साथ भगवान की पूजा करना।
2. निष्काम भक्ति- सकाम के विपरीत, यह बिना स्वार्थ प्रेरणा वाली भक्ति है।
3. रागात्मिका भक्ति- वह भक्ति जो रीति-रिवाजों और कर्मकांडों तक सीमित नहीं है।
4. वैधि भक्ति- रागात्मिका के विपरीत, यह भक्ति समाज के रीति-रिवाजों द्वारा सीमित है।
5. व्यभिचारिणी भक्ति- भगवान के अलावा परिवार और संपत्ति से प्यार करना।
6. अव्यभिचारिणी भक्ति- हर समय भगवान से प्रेम करना।
अन्य ग्रंथों में ये भी..
-सनातन धर्म के अन्य ग्रंथों में पंचधा एवं नवधा भक्ति को विस्तार में समझाया गया है।
-भक्ति की श्रेणी सिर्फ विभिन्न चरणों के अस्तित्व के लिए है!
-आत्मनिवेदनम या पूर्ण समर्पण उच्च स्तर पर है।
-भगवान श्री कृष्ण के वचन, "मामेकम शरण व्रज" ही उच्चतम स्तर है!