शिक्षकों की वेतन विसंगति: त्याग का अनदेखा सच, क्या सरकार सुनेगी उनकी आवाज?
प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने विधानसभा में स्पष्ट कर दिया कि सहायक शिक्षकों की वेतन विसंगति दूर करने के लिए कोई समिति गठित नहीं की गई है। यह जवाब शिक्षकों के लिए निराशाजनक रहा, क्योंकि वे उम्मीद कर रहे थे कि सरकार बजट 2025-26 में इस मुद्दे पर कुछ घोषणा करेगी।

जांजगीर, जनजागरुकता। छत्तीसगढ़ के सहायक शिक्षकों को तब बड़ा झटका लगा, जब विधानसभा में उनके वेतन विसंगति से जुड़े सवाल का जवाब आया। शिक्षकों ने जिस "मोदी गारंटी" पर भरोसा किया था, वह अब सवालों के घेरे में है। राज्य सरकार की कथनी और करनी में अंतर को लेकर शिक्षकों में गहरी निराशा है।
शिक्षकों के संघर्ष का सफर
छत्तीसगढ़ सहायक शिक्षक/समग्र शिक्षक फेडरेशन के नेता रविंद्र राठौर ने बताया कि पूर्ववर्ती रमन सरकार के दौरान शिक्षकों ने वेतन विसंगति के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया था। कांग्रेस शासन के पांच सालों में यह आंदोलन और तेज हुआ, जिसे कई कर्मचारी संगठनों और विपक्षी दल भाजपा का समर्थन मिला। चुनाव से पहले भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में "मोदी गारंटी" के तहत वेतन विसंगति दूर करने का वादा किया था, लेकिन मौजूदा सरकार के 14 महीने के कार्यकाल में इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
विधानसभा में निराशाजनक जवाब
प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने विधानसभा में स्पष्ट कर दिया कि सहायक शिक्षकों की वेतन विसंगति दूर करने के लिए कोई समिति गठित नहीं की गई है। यह जवाब शिक्षकों के लिए निराशाजनक रहा, क्योंकि वे उम्मीद कर रहे थे कि सरकार बजट 2025-26 में इस मुद्दे पर कुछ घोषणा करेगी।
सरकार से भरोसा टूटता जा रहा है
रविंद्र राठौर का कहना है कि शिक्षकों ने सरकार को कई बार ज्ञापन देकर अपनी मांगें रखीं, सांसद विजय बघेल से चर्चा की, और उन्हें आश्वासन भी मिला कि वेतन विसंगति दूर होगी। लेकिन विधानसभा में मुख्यमंत्री के जवाब ने यह साबित कर दिया कि सरकार इस मुद्दे को सिर्फ टाल रही है।
आंदोलन की ओर बढ़ते कदम
शिक्षक नेता का कहना है कि भाजपा सरकार के दौरान संविलियन हुआ था, लेकिन कई विसंगतियां बनी रहीं। शिक्षकों ने भरोसा किया कि यह सरकार उनकी समस्याओं को दूर करेगी, इसलिए उन्होंने लोकसभा और नगर निकाय चुनावों के दौरान कोई बड़ा आंदोलन नहीं किया। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि शिक्षकों के त्याग को अनदेखा किया जा रहा है।
सड़कों पर उतरने की चेतावनी
राठौर ने स्पष्ट किया कि यदि सरकार ने शीघ्र निर्णय नहीं लिया, तो शिक्षक एक बार फिर आंदोलन के लिए मजबूर होंगे। वे इसे राष्ट्रीय स्तर तक ले जाएंगे और बताएंगे कि कैसे "मोदी गारंटी" सत्ता में आते ही एक जुमला बन गई।
क्या सरकार शिक्षकों की आवाज सुनेगी, या वे फिर से आंदोलन का रास्ता अपनाने पर मजबूर होंगे?janjaagrukta.com