संगीत प्राण है, संगीत मनुष्यता का सृजन करता है, संगीत से होते हैं सुसंस्कार के बीज रोपित
आशियाना कालोनी में चल रही श्रुति संगीतालय की सात दिवसीय कार्यशाला का उत्साह के साथ समापन हुआ।
गौरेला, जनजागरुकता। रेस्ट हाउस रोड, आशियाना कालोनी में चल रही श्रुति संगीतालय की सात दिवसीय कार्यशाला का समापन हुआ। इस दौरान सुमधुर संगीत की स्वर लहरियां गुंजती रहीं। नई पीढ़ी ने संगीत के महत्व को जाना, समझा और जीवन में संगीत कितना महत्व है इसकी बारीकियां जानी।
वहीं वक्ताओं ने कहा कि संगीत का अर्थ गाना नहीं है न ही संगीत सीखकर गायक बनना उद्देश्य है, अपितु संगीत प्राण है, संगीत मनुष्यता का सृजन करता है, क्योंकि हाड़-मास का पिंड मानव शरीर में अच्छे भोजन अर्थात (भक्ष्य पदार्थ) प्रभु प्रसाद के द्वारा सुंदर मन का निर्माण होता है और संगीत अर्थात अच्छा गाना गाकर सुसंस्कार के बीज रोपित होते हैं।
गंगानगर क्षेत्र में आचार्य सुरेश दुबे की मौजूदगी में समापन समारोह हुआ। मुख्य अतिथि पूर्व अध्यक्ष अधिवक्ता संघ पेंड्रारोड अतुल कुमार तिवारी व चंद्रकांता तिवारी संचालिका एवं प्राचार्य दयाशंकर उमावि ने मां सरस्वती की पूजा, दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरूआत की। बच्चों ने सुमधुर कंठ से नि:सृत पावन सरस्वती वंदना के मनमोहक स्वर ने संपूर्ण वातावरण को मनमोहित कर लिया।
मुख्य अतिथि द्वय का स्वागत कृष्णा तिवारी एवं श्वेता गोयल ने तिलक लगाकर, पुष्प गुच्छ से किया। निष्ठा दुबे ने अतिथियों के स्वागत में 'अतिथि देव बन आप पधारे' गीत प्रस्तुत किया। उसके बाद रिषु, तेजिका, परिधि एवं काव्या ने गुरु वंदना पेश किए। परिधि ने कैसियो पर 'वंदेमातरम्' गीत प्रस्तुत किया। सुचिता एवं निष्ठा ने राग बिहाग में द्रुत लय की बंदिश 'कान्हा जा रे जा रे सांवरिया' एवं 'श्री नर्मदाष्टकम्' प्रस्तुत किया।
कैसियो की घुन पर गुनगुनाने लगे लोग
नन्हे अथर्व ने कैसियो पर 'सारे जहां से अच्छा गीत' प्रस्तुत किया। अर्श शर्मा की प्रस्तुति 'कभी न ऐसा कार्य करेंगे नीचा शीश हमारा हो' गीत गाया गया। आगमन ने जब कैसियो पर 'हर-हर शंभू' गीत बजाया तो पालक एवं विद्यार्थी भक्ति से ओतप्रोत गुनगुनाने लगे। अभिनव एवं सिद्धार्थ ने 'आया करो ज़रा कह दो सांवरिया से' ठुमरी गाई।
इन्होंने मनमोहक प्रस्तुति दी
काव्या ने कैसियो पर 'हर घड़ी बदल रही है रूप जिंदगी' बजाया। स्वास्तिका ने 'कौन कहता है भगवान् आते नही' और कपीश ने बर्थडे गीत बजाया। 'शिव तांडव स्तोत्र' की प्रस्तुति काव्या परिधि ने दी। मोनिका ने निर्गुण भजन 'पिया मिलन कैसे जाओगी गोरी' प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अंत में कृष्णम् शुक्ल ने राग बागेश्री में 'छोटा ख्याल एवं तराना तथा श्री रुद्राष्टकम्' गाकर अभिभावक श्रोताओं का मनमोह लिया। निर्दोष राठौर ने तबले पर संगत की।
मोबाइल, टीवी से दूर बच्चे पियानो में व्यस्त रहे
बच्चों ने पालक वृंद से कार्यशाला का अनुभव साझा करते हुए बताया कि इन सात दिनों ने उन्हें सुबह से शाम तक एक प्रवाह में बांध दिया। यहां मोबाइल, टीवी से कोसों दूर बच्चे प्रातः पियानो का अभ्यास करते और संध्या समय गायन का। सुचिता ने अभिभावक वृंद को संगीत कक्षा का अनुभव साझा करते हुए बताया कि हमें गुरु जी रोहित तिवारी रागों का शिक्षण इस प्रकार देते हैं कि हमें बंदिश रटनी नहीं पड़ती।
6 साल से रोहित तिवारी का मार्गदर्शन मिल रहा
राग के स्वर का अभ्यास कराते हुए स्व प्रेरणा से तान बनाते हम आनंद सागर में निमग्न हो जाते हैं। कृष्णम् शुक्ल जो विगत छः वर्षों से रोहित तिवारी जी के मार्गदर्शन में विकसित हो रहे हैं। उन्होंने विगत वर्ष राष्ट्र स्तरीय कला उत्सव प्रतियोगिता में छग का प्रतिनिधित्व करने का श्रेय गुरुजी को दिया।
बच्चों को संगीत से जोड़ना अद्भुत प्रयास
अभिभावकों ने इस कार्यशाला के आयोजन के लिए प्रशिक्षक रोहित तिवारी को धन्यवाद दिया कि उन्होंने अपने ग्रीष्मावकाश का बहुमूल्य समय गौरेला अंचल के विद्यार्थियों के सांगीतिक उत्थान के लिए लगाया। सीतू दुबे ने उक्त कार्यशाला द्वारा बच्चों को संगीत के संस्कार से जोड़ने के अद्भुत प्रयास की खूब प्रशंसा की। पालकों की ओर से छात्र अभिनव तिवारी के पिताजी कृष्णा तिवारी ने शाल-श्रीफल एवं स्वामी विवेकानंद जी का चित्र भेंटकर प्रशिक्षक का आत्मिक सम्मान किया।
भौतिकवादी युग में शिक्षकों के लिए आदर्श
कृष्णम् शुक्ल की माता ने रोहित तिवारी के विषय में बताया कि वे आज के भौतिकवादी युग में शिक्षकों के लिए आदर्श हैं जो व्यावसायिक शिक्षा से कोसों दूर रह एकमात्र बालकों के चारित्रिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक उत्थान के लिए संगीत शिक्षा का पावन पुनीत कार्य कर रहे हैं। अभिभावक दुर्गेश दुबे ने कहा कि संगीत का अर्थ गाना नहीं है न ही संगीत सीखकर गायक बनना उद्देश्य है, अपितु संगीत प्राण है, संगीत मनुष्यता का सृजन करता है, क्योंकि हाड़-मास का पिंड मानव शरीर में अच्छे भोजन अर्थात (भक्ष्य पदार्थ) प्रभु प्रसाद के द्वारा सुंदर मन का निर्माण होता है और संगीत अर्थात अच्छा गाना गाकर सुसंस्कार के बीज रोपित होते हैं।
ऐसा प्रयास वनांचल के लिए प्रशंसनीय
अभिभावक अभिजीत पाठक ने संपूर्ण आयोजन के लिए श्रुति संगीतालय के प्रयासों की हार्दिक प्रशंसा करते हुए शुभकामनाएं दी। शिरीष दुबे अधिवक्ता ने श्रुति संगीतालय के प्रयास को सराहा और आशा की कि भविष्य में श्रुति संगीतालय की गंगोत्री गंगा बन कर वनांचल गौरेला, पेंड्रा, मरवाही क्षेत्र में शास्त्रीय संगीत की अविरल धारा प्रवाहित करेगी।
पालकों ने रोहित तिवारी के प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
हम सभी में है गुरु-तत्व
मुख्य अतिथि चंद्रकांता तिवारी ने श्रुति संगीतालय को आशीर्वचन देते हुए बच्चों को बताया कि हम सभी में गुरु-तत्व होता है और उसी गुरु-तत्व को जगाने का श्रेष्ठ कार्य रोहित तिवारी कर रहे हैं। बच्चों के सांगीतिक, चारित्रिक, आध्यात्मिक उन्नति के लिए श्रुति संगीतालय का यह बूंद भर प्रयास भविष्य में निर्मल जल-धार के रूप में प्रवाहित हो। इस क्षेत्र को संगीतानंद की हरी-भरी लहलहाती फसल देगी। अतुल तिवारी ने रोहित तिवारी के प्रयासों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि सात दिवस के अल्प समय में श्रुति संगीतालय का यह कार्य गागर में सागर भरने के समकक्ष है।
गुरुजी का सम्मान किया गया
इस संपूर्ण आयोजन के सात दिनों में ऋतु शुक्ल ने टायपिंग एडिटिंग का दायित्व सम्हाला। विद्यार्थी कृष्णम्, सुचिता, निष्ठा, निर्दोष, तरुण ने गुरु जी के निर्देशानुसार सभी दायित्वों का निर्वहन किया। अंत में श्रुति संगीतालय को समर्पित कविता सह छायाचित्र भेंट कर गुरुजी का सम्मान किया गया। वहीं तीन घंटे का बहुमूल्य समय देकर पालकों ने सिद्ध कर दिया कि श्रेष्ठ कार्यों को जन समर्थन निश्चित रूप से मिलता है।
इनकी रही उपस्थिति
कार्यक्रम में श्वेता गोयल, सीतू दुबे, रचना शुक्ल, अभिजीत पाठक, कृष्णा तिवारी, अपर्णा द्विवेदी, निशु शुक्ला, निधि शर्मा, प्रीति साठे, दीपक शर्मा एवं विद्यार्थी निष्ठा, सुचिता, कृष्णम, निर्दोष, मोनिका, आगमन, कपीश, रुद्र, अर्श, आयुष, अभिनव, अथर्व, स्वास्तिका, तेजिका, परिधि, काव्या, अभय तिवारी, आनंदिता, विवान आदि उपस्थित रहे।