विश्व के प्रथम.. महान.. गणितज्ञ और खगोल विज्ञानी थे आर्यभट्ट..
जानें भारत से महान सपूत के बारे में.. उस समय अनेकों भारतीय विद्वानों.. वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, भास्करा चार्य, कमलाकर आदि में आर्यभट्ट का नाम भी शामिल है।
जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..
जनजागरुकता, धर्म डेस्क। विश्व के प्रथम, प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ, ज्योतिषविद् एवं खगोलशास्त्री आर्यभट्ट थे। उस समय अनेकों भारतीय विद्वानों.. वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, भास्करा चार्य, कमलाकर आदि में आर्यभट्ट का नाम भी शामिल है। यहां हम कुछ तथ्यात्मक चर्चा कर रहे हैं। जिस वजह से भारत आदिकाल से महान धरती रही है। विश्व को भारत का लोहा मनवाया।
आर्यभट्ट ने शून्य की खोज की ..तो रामायण में रावण के दस सिर की गणना कैसे की गयी..?
कुछ लोग हिंदू धर्म व "रामायण" "महाभारत" "गीता" को काल्पनिक दिखाने के लिए यह प्रश्न करते हैं कि जब आर्यभट्ट ने लगभग 6वीं शताब्दी में (शून्य/जीरो) की खोज की ..तो आर्यभट्ट की खोज से लगभग 5000 हजार वर्ष पहले रामायण में रावण के- 10 सिर की गिनती कैसे की गई..? और महाभारत में कौरवों की 100 की संख्या की गिनती कैसे की गई..? जबकि उस समय लोग (जीरो) को जानते ही नहीं थे, तो लोगों ने गिनती को कैसे गिना..?
इस बात के लिए इसे पूरा ध्यान से पढे़ं..
आर्यभट्ट से पहले संसार 0 (शून्य) को नही जानता था। आर्यभट्ट ने ही (शुन्य/जीरो) की खोज की, यह एक सत्य है। लेकिन आर्यभट्ट ने "0 (जीरो) की खोज 'अंकों में' की थी, 'शब्दों' में खोज नहीं की थी, उससे पहले 0 (अंक को) शब्दों में शून्य कहा जाता था। उस समय में भी हिन्दू धर्म ग्रंथों में जैसे शिव पुराण, स्कन्द पुराण आदि में आकाश को "शून्य" कहा गया है। यहां पर "शून्य" का मतलब अनंत से होता है। लेकिन रामायण व महाभारत काल में गिनती अंकों में न होकर शब्दों में होता था, और वह भी "संस्कृत" में।
यहां समझें शून्य की भाषा..
उस समय "1,2,3,4,5,6,7,8, 9,10" अंक के स्थान पर 'शब्दों' का प्रयोग होता था वह भी 'संस्कृत' के शब्दों का प्रयोग होता था। जैसे: 1 = प्रथम 2 = द्वितीय 3 = तृतीय" 4 = चतुर्थ 5 = पंचम"" 6 = षष्टं" 7 = सप्तम"" 8 = अष्टम, 9 = नवंम"" 10 = दशम। "दशम = दस" यानी दशम में "दस" तो आ गया, लेकिन अंक का 0 (जीरो/शून्य) नहीं आया, रावण को दशानन कहा जाता है। 'दशानन मतलब दश+आनन =दश सिर वाला' अब देखो रावण के दस सिर की गिनती तो हो गई। लेकिन अंकों का 0 (जीरो) नहीं आया।
महाभारत काल में..
इसी तरह महाभारत काल में "संस्कृत" शब्द में "कौरवों" की सौ की संख्या को "शत-शतम" बताया गया। 'शत्' एक संस्कृत का "शब्द है, जिसका हिन्दी में अर्थ सौ (100) होता है। सौ(100) को संस्कृत में शत् कहते हैं। शत = सौ इस प्रकार महाभारत काल में कौरवों की संख्या गिनने में सौ हो गई। लेकिन इस गिनती में भी "अंक का 00(डबल जीरो)" नहीं आया, और गिनती भी पूरी हो गई। महाभारत धर्मग्रंथ में कौरव की संख्या शत बताया गया है।
अब देखें रोमन भाषा में..
डॉ. आर अवस्थी के अनुसार रोमन में भी 1-2-3-4-5-6-7-8-9-10 की जगह पर (¡), (¡¡), (¡¡¡) पांच को V कहा जाता है। दस को x कहा जाता है। X= दस इस रोमन x में अंक का (जीरो/0) नहीं आया। और हमने दश पढ़ भी लिए और गिनती पूरी हो गई! इस प्रकार रोमन शब्द में कहीं 0 (जीरो) नहीं आता है। और आप भी रोमन में एक से लेकर सौ की गिनती पढ़-लिख सकते हैं। आपको 0 या 00 लिखने की जरूरत भी नहीं पड़ती है। पहले के जमाने में गिनती को शब्दों में लिखा जाता था। उस समय अंकों का ज्ञान नहीं था। यही रहे भारत के सपूत महान गणितज्ञ आर्यभट्ट।