कर्मों को भोगना ही पड़ेगा.. सिद्ध सन्तों को भी भयानक रोग होते हैं..

भगवान ने कहा है मेरा नियम यही है.. कि मैं अपने लोगों को (भक्त जन) दुःख पहले देता हूं। मैं अपने भक्तों को दुःख के भोग पहले देकर फिर अपने पास बुला लेता हूं।

कर्मों को भोगना ही पड़ेगा.. सिद्ध सन्तों को भी भयानक रोग होते हैं..

जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..

जनजागरुकता, धर्म डेस्क। दुनिया में जो भी जीव आता है उसे जाना ही पड़ता है। अमर कोई भी नहीं हो सकता। प्रकृति, चीजें स्थायी कुछ भी नहीं है। परिवर्तन निश्चित है। सनातन धर्म के ग्रंथों में हर बात की जानकारी है। धरती पर आए हर जीव को अपने पूर्व और वर्तमान के कर्मों का हिसाब देना ही पड़ता है.. यानि कर्मों का फल अच्छा हो या बुरा भोजना ही पड़ता है.. इस बात को गीता में बेहतर तरीके से कहा गया है..

प्रिय ! अवश्यम् एव भोगतव्यं.. (श्री मद्भगवतगीता)

सिद्ध सन्तों महापुरुषों को भी भयानक रोग होते हैं, क्यों ज्ञरमण महर्षि, रामकृष्ण परमहंस, हनुमान प्रसादपोद्दार, रामचन्द्र डोंगरेजी ये सब महापुरुष हुये हैं। जगत का इन्होंने बहुत भला किए हैं। अध्यात्म जगत में इनका बड़ा योगदान है। पर इन महापुरुषों को भी कैन्सर के कारण शरीर छोड़ना पड़ा.. क्यों.. इनमें से रामकृष्ण परमहंस? हनुमान प्रसाद पोद्दार जी कई महीनों से बबासीर के रोग से पीड़ित थे। इस पीड़ा को सह नहीं पाते थे.. 

मुझे मुक्त क्यों नहीं कर देते..

एक ऐसी ही कथा बता रहे हैं.. जगन्नाथपुरी में माधव दास नामक एक सिद्ध महात्मा रहते थे। कथा ऐसी है कि कई दिनों से माधव दास बाबा को अतिसार हो गया था। दस्त इतने हो रहे थे कि रुक ही नहीं रहा था। तब माधवदास बोले.. सुनो ! भगवन् ! आप इस दुःख से मुझे मुक्त ही क्यों नहीं कर देते ?

यह भोग पूर्वजन्म का है..

..तब जगन्नाथ भगवान मुस्कुराये थे.. बाबा ! कर्म का फल तो भोगना ही पड़ेगा।। ..हां मैं  कुछ ही दिनों में तुम्हें प्रारब्ध का फल दे देना चाहता हूं। ताकि तुम जल्दी से जल्दी भोगों  को भोगकर मेरे ही पास आ जाओ बाबा ! ये दुःख जो आप भोग रहे हो.. ये पूर्वजन्म का  भोग है.. भगवान ने कहा और मेरा नियम यही है.. कि मैं अपने लोगों को (भक्त जन) दुःख पहले देता हूं। मैं अपने भक्तों को दुःख के भोग पहले देकर फिर अपने पास में बुला लेता हूं।

इसका रहस्य यही है

इस अध्यात्म मार्ग में आने से पहले गलत कर्म करने वाले "सुख" भोगते थे। पर जैसे ही वो अध्यात्म में आए, भगवत् साधना में लगे उनका "दुःख" शुरू हो गया। इसका रहस्य यही है। भगवान अपने लोगों को दुःख पहले देते हैं, ताकि उस दुःख के भोगों की गन्दगी से जल्दी ही उनका भक्त मुक्त हो जाए। फिर आनंद की ऐसे धरातल प्रदान करते हैं कि भक्त भगवत्ता की ऊर्जा से लबालव ही रहता है।

सुख भी प्यारे, दुःख भी प्यारे..

ये कहानी भक्तमाल की है। इस कहानी से भी आप बहुत कुछ समझ जाएंगे।

सुख भी मुझे प्यारे हैं, दुःख भी मुझे प्यारे हैं। क्या कहूं भगवन् दोनों ही तुम्हारे हैं।

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