श्रमिक दिवस पर विशेष : बटकी म बासी अउ चुटकी म नून, मैं गात हंव ददरिया तैं कान देके सुन

छत्तीसगढ़ धान का कटोरा है और धान का कटोरा यूँ ही नहीं भरता, लाखों मेहनतकश किसानों के तिल तिल कर मेहनत करने से यह कटोरा भरता है और समृद्ध होता है।

श्रमिक दिवस पर विशेष : बटकी म बासी अउ चुटकी म नून, मैं गात हंव ददरिया तैं कान देके सुन

रायपुर, जनजागरुकता। भारत में खानपान को लेकर जो परंपराएं हैं उसमें हमेशा एक तत्व देखा गया है कि राज्यव्यवस्था हमेशा लोकजीवन के साथ उत्सवों में हिस्सा लेती थी। पुराने दौर में राजसूय यज्ञ होते थे जिसमें राजा स्वयं आम जनता के साथ ऐसे उत्सव में हिस्सा लेते थे। जब राजव्यवस्था स्थानीय संस्कृति का आदर करती है तो जनता का भी अपनी संस्कृति के प्रति गौरवबोध मजबूत होता है। सीएम भूपेश बघेल ने पिछली बार अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस के दिन सबसे बोरे बासी खाने का आग्रह किया। उनका यह संदेश बहुत लोकप्रिय हुआ और छत्तीसगढ़ से बाहर भी विदशों में भी बसे छत्तीसगढ़िया परिवारों ने इस दिन बोरे-बासी खाकर हमारी समृद्ध खानपान परंपरा को भी जिया।

हिंदी के राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की प्रसिद्ध कविता है कि जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं, वो हृदय नहीं वो पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। स्वदेश के प्रति प्रेम क्या है उसकी संस्कृति से अनुराग, भाषा से अनुराग और खानपान की परंपराओं से अनुराग। जब हम सैकड़ों बरसों से चली आ रही खाद्य परंपराओं को अपनाते हैं तो अपने पुरखों के संजोये धरोहरों को भी आगे बढ़ाते हैं। हमारे पुरखों ने बोरे बासी खाकर कड़े परिश्रम से इस धरती को उपजाऊ बनाया।

बोरे बासी सबसे आसान खाद्य पदार्थ है

छत्तीसगढ़ धान का कटोरा है और धान का कटोरा यूँ ही नहीं भरता, लाखों मेहनतकश किसानों के तिल तिल कर मेहनत करने से यह कटोरा भरता है और समृद्ध होता है। यह मेहनत तब हो पाती है जब समय का सदुपयोग होता है। इसके लिए बोरे बासी सबसे आसान खाद्य पदार्थ है। रात के वक्त बचा चावल भीगा दो और सुबह तक बासी तैयार हो जाती है। रात को जो किण्वन की प्रक्रिया होती है उससे बासी में विशेष स्वाद आ जाता है। बासी का विटामिन सुबह तक रिचार्ज कर देता है। सदियों से यह छत्तीसगढ़िया लोगों के लिए तरोताजा करने वाला खाद्य पदार्थ रहा है।

डिहाइड्रेशन के खतरे को कोसों दूर रखता है

बोरे और बासी श्रम का प्रतीक है। कर्क रेखा के क्षेत्र में पड़ने वाले हमारे प्रदेश में कड़ी धूप में श्रम के लिए मेहनतकश लोगों को तैयार करने में बोरे-बासी से विशेष मदद मिलती है। गोंदली अर्थात प्याज के साथ बोरे बासी का स्वाद शरीर को ताजगी प्रदान करता है और डिहाइड्रेशन के खतरे को कोसों दूर रखता है। छत्तीसगढ़ में प्याज को लेकर मान्यता भी है कि इससे लू नहीं लगती। माताएं अपने बच्चों को घर से निकलते वक्त उनके जेब में प्याज रखा देती हैं। इस तरह गोंदली और बोरे बासी का संयोग लू से लड़ने की ताकत देता है।

अजब विटामिन भरे हुए हैं छत्तीसगढ़ के बासी में

बोरे बासी हमारी परंपरा में इतना रचा बसा है कि लोक परंपराओं में कितने ही गीत इसे लेकर बनाये गये हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध गीत है अजब विटामिन भरे हुए हैं छत्तीसगढ़ के बासी में। जब ददरिया सुनते हैं तो एक गीत आता है कि बटकी म बासी अउ चुटकी म नून, मैं गात हंव ददरिया तैं कान देके सुन। बोरे बासी की लोकप्रियता से ही इस खाद्य पदार्थ को इतनी जगह लोकसंस्कृति में मिल पाई है। दरअसल हमारा खानपान न केवल हमारी रुचि से जुड़ा होता है अपितु हम भावनात्मक रूप से भी इससे गहराई से जुड़े रहते हैं। जब छत्तीसगढ़ के किसी किसान परिवार का बेटा शहर में बसता है तो भी उसकी जड़ें गाँव में बनी रहती हैं। उसकी सुबह बासी के साथ होती है और दोपहर का नाश्ता बोरे के रूप में। यह केवल फूड हैबिट नहीं है अपितु भावनात्मक लगाव है।

खानपान की परंपराओं को बढ़ावा दिया 

जब हम अपनी खानपान की परंपराओं को सहेजते हैं तो कहीं न कहीं हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को भी सहेजते हैं। किसी भी प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान का बड़ी हिस्सा उसकी खानपान की परंपरा होती है। छत्तीसगढ़ में इसे सहेजने के लिए जो कदम उठाये गये हैं और जिस तरह से स्थानीय खानपान की परंपराओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। उससे प्रदेश के ठोस सांस्कृतिक विकास की नींव पुख्ता हो गई है।

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