श्रावण- विशेष.. सावन में प्रतिदिन करें रुद्राद्वादश नाम स्तोत्र का पाठ..

दुखों-कष्टों से मुक्ति तथा सद्गति प्राप्त करने के उद्देश्य से मनुष्य आदिकाल से रूद्रोपासना करता आया है। रूद्र को अभिषेक प्रिय कहा गया है, यानी उन्हें अभिषेक पसंद है।

श्रावण- विशेष.. सावन में प्रतिदिन करें रुद्राद्वादश नाम स्तोत्र का पाठ..

जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..

जनजागरुकता, धर्म डेस्क। सनातन धर्म का सबसे पवित्र महीना सावन जारी है। चारों ओर हर-हर भोले की गूंज है। देवों के देव महादेव की पूजा-अर्चना में लोग लीन हैं। जिस तरह भी पूज सकते हैं, श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ के द्वार पहुंच रहे हैं। वहीं शंकर जी के अभिषेक के लिए कांवड़िए अल सुबह से नदी, तालाब, पोखरों से जल लेकर महाकाल के मंदिर पहुंच रहे हैं।

ऐसे समय में वेद मंत्र और विधि-विधान के साथ पूजन का ध्यान रखने से भगवान की कृपा मिलती है। आइए जानते हैं मंत्रों को.. रूद्र का परिचय शास्त्रों में कई तरह का दिया गया है, पर इस प्रकार भी दिया गया है..

अशुभं द्रावयन् रूद्रो यज्जाहार पुनर्भवम्।

तत: स्मृताभिघो रूद्राशब्देनात्राभिघीयते।।

भावार्थ

जो प्राणी के जीवन काल में सब अनिष्टों को दूर करता है और शरीर त्यागने पर मुक्ति प्रदान करते हैं, वे सदाशिव रूद्र के नाम से जाने जाते हैं। इसी कारण दुखों-कष्टों से मुक्ति तथा सद्गति प्राप्त करने के उद्देश्य से मनुष्य आदिकाल से रूद्रोपासना करता आया है। रूद्र को अभिषेक प्रिय कहा गया है, यानी उन्हें अभिषेक पसंद है।

108 बार नहीं तो 27 बार करें रुद्राद्वादश नाम स्तोत्र का पाठ

सावन में प्रतिदिन रुद्राद्वादश नाम स्तोत्र का पाठ करें, विशेषकर वो लोग जो ऑफिस आदि की व्यस्तता और यात्रा के चलते अधिक समय पूजा पाठ को नहीं दे सकते, पूजा को छोटा ही रखें। जल्दी-जल्दी में किये गए अशुद्ध जप और पाठ का भी कोई लाभ नहीं है। 

कर्तव्य सर्वोपरि

और मन को भी दुखी न करें कि आप पूजा जप या स्तोत्र पाठ, अर्चन या मंदिर जाने के नियम को रोज या विधि पूर्वक नहीं कर पा रहे हैं। सनातन धर्म में कर्तव्य ही पूजा कही गयी है, इसलिए मानसिक जप/पाठ के साथ कर्तव्य की पूर्ति पहले कीजिये चाहे वो आपके ऑफिस, परिवार, बच्चों या समाज के लिए है.. कर्तव्य सर्वोपरि है। इसलिए अगर 108 बार न कर पाएं तो केवल, 27 बार जप करें पर मन से और भावपूर्ण करें।

श्री रुद्रद्वादशनाम स्तोत्रं

"प्रथमं तु महादेवं द्वितीयं तु महेश्वरम् ।*

तृतीयं शङ्करं प्रोक्तं चतुर्थं वृषभध्वजम् ॥ 

पञ्चमं कृत्तिवासं च षष्ठं कामाङ्गनाशनम् ।

सप्तमं देवदेवेशं श्रीकण्ठं चाष्टमं तथा ॥ 

नवमं तु हरं देवं दशमं पार्वतीपतिम् ।

रुद्रमेकादशं प्रोक्तं द्वादशं शिवमुच्यते ॥ 

फलश्रुति-

एतद्वादशनामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।

गोघ्नश्चैव कृतघ्नश्च भ्रूणहा गुरुतल्पगः ॥ 

स्त्रीबालघातकश्चैव सुरापो वृषलीपतिः ।

सर्वं नाशयते पापं शिवलोकं स गच्छति ॥ 

शुद्धस्फटिकसङ्काशं त्रिनेत्रं चन्द्रशेखरम् ।

इन्दुमण्डलमध्यस्थं वन्दे देवं सदाशिवम् ॥

॥ इति श्रीरुद्रद्वादशनामस्तोत्रं समाप्तम् ॥

   || हर-हर महादेव शंभो काशी विश्वनाथ शंभू || 

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