जीव को केवल अपनी वासना प्यारी लगती है..
इच्छायें त्यागे बिना आध्यात्मिक सत्यों का अनुभव नहीं कर सकते। इच्छायें करें तो वह निष्काम और लोक सेवा की करें जिससे कर्तव्यपालन का श्रेय भी मिले और कर्म- बन्धन में भी न बंधे।
जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..
जनजागरुकता, विचारणीय डेस्क। मां काली के परम भक्त रामकृष्ण परमहंस अपनी बात समझाते हुये उन्होंने एक कहानी बताई- बंगाल के एक गांव की एक स्त्री मछली बेचने बाजार गई।लौटते समय रास्ते में आंधी चलने लगी और तेज बरसात होने लगी। मछली वाली के साथ एक मालिन भी थी। मालिन का घर पास था, उसने मछली वाली को घर में रुकने कहा। उसे भोजन कराया और बरामदे में जहां सुगन्धित फूल रहते थे सुलाकर वह भी सोने के लिए चली गई।
मछली वाली को फूलों की गन्ध बड़ी अप्रिय लग रही थी, उसके कारण नींद नहीं आ रही थी। तब उसको एक उपाय सूझा। उसने अपनी मछलियां ढोने वाली टोकरी ली और उसमें थोड़ा पानी छिड़का, पानी छिड़कने से मछलियों की बदबू उभर आई। उसके बाद टोकरी को सिरहाने रख लिया, तो उसे नींद आ गई। मछली वाली ने चैन से रात काटी।
परमहंस ने कहा मनुष्य के मन में भरी विषय वासनाओं का स्वरूप कुछ ऐसा ही है। जीवन पर्यन्त वह अपनी वासनाओं की पूर्ति में ही संलग्न रहता है। और मरता है तब भी ये वासनायें ही उसे पुनर्जन्म के घेरे में उसी प्रकार खींच ले जाती हैं जिस प्रकार गोबर की गन्ध गुबरैले को..? पुनर्जन्म और कुछ नहीं अपनी वासनाओं की पूर्ति का नया प्रयास ही होता है। परमहंस ने कहा हृदय की कामनायें और वासनायें नष्ट होती हैं, तभी जीव अमृतत्व और ब्रह्मत्व को प्राप्त करता है।
इच्छाएं ऐसे हो कि मुक्ति मिले
सारांश यह है कि हम इच्छायें त्यागे बिना आध्यात्मिक सत्यों का अनुभव नहीं कर सकते। इच्छायें करें तो वह निष्काम और लोक सेवा की करें जिससे कर्तव्यपालन का श्रेय भी मिले और कर्म- बन्धन में भी न बंधे। स्वामी रामकृष्ण परमहंस की जय।
वंदना..
रूद्रसंहिता से..
वन्दे वन्दनतुषाटमानसमतिप्रेमप्रियं प्रेमदं।
पूर्णं पूर्णकरं प्रपूर्णनिखिलैश्वर्यैकवासं शिवम्।।
सत्यं सत्यमयं त्रिसत्यविभवं सत्यप्रियं सत्यदं।
विष्णुब्रह्मनुतं स्वकीयकृपयोपात्ताकृतिं शंकरम्।।
भावार्थ- वन्दना करने से जिसका मन प्रशन्न हो जाता है, जिन्हें प्रेम अत्यंत प्यारा है, जो प्रेम प्रदान करने वाले, पूर्णा नन्दमय, भक्तों की अभिलाषा पूर्ण करने वाले, सम्पूर्ण ऐश्वर्यों के एक मात्र आवास्थान और कल्याण स्वरूप हैं, सत्य जिसका श्रीविग्रह है। जो सत्यमय है, जिनका ऐश्वर्य त्रिकालाबाधित है, जो सत्य प्रिय एवं सत्य प्रदाता हैं, ब्रह्मा और विष्णु जिनकी स्तुति करते हैं, स्वेच्छानुसार शरीर धारण करने वाले उन भगवान शंकर की मैं वन्दना करता हूं।