मणिपुर में भड़की हिंसा, 8 जिलों में कर्फ्यू, देखते ही गोली मारने के आदेश
जला दिए गए वन विभाग के दफ्तर। 7500 लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया। धारा 144 लागू , 5 दिनों तक इंटरनेट सेवा बंद रहेगी।
इंफाल, जनजागरुकता डेस्क। भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में मैतई समुदाय के लोग सालों से अनुसिचत जाति से अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं ताकि इन्हें पहाड़ी इलाकों में बसने का मौका मिल सके। राज्य का 90 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ी है। राज्य में मैतई समुदाय के लोगों की संख्या 53% है जबकि 40% नागा और कुकी लोग हैं। इसी विवाद के चलते हिंसा भड़कने की खबर है।
यह हिंसा मणिपुर के 8 जिले में फैल गई है। वन विभाग के दफ्तर को जला दिया गया है। सात हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। जिसकी वजह से पूरे प्रदेश में 144 धारा के साथ इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है। मुख्यमंत्री ने पीएम से चर्चा कर सेना भेजने की मांग की। ताकि हिंसा पर काबू पाया जा सके। असम राइफल्स की 34 और सेना की 9 कंपनियां तैनात कर दी गई है। इधर मुख्यमंत्री ने हिंसा फैलाने वालों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए हैं।
‘आदिवासी एकता मार्च’ से फैली हिंसा
मणिपुर में बुधवार को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से ‘मैतई’ समुदाय को एसटी का दर्जा देने पर विचार करने की मांग की। इस मांग के विरोध में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला जिसके दौरान अचानक राज्य भर में हिंसा की आग भड़क उठी। वहीं, मैतई समुदाय को ST का दर्जा दिलाने की मांग करने वाले समुदाय ने बताया कि ये मुद्दा अपनी पैतृक जमीन, संस्कृति और पहचान से जुड़ा है।
बहुसंख्यक मैतई हिन्दू पहाड़ में नहीं बस सकते
विवाद की वजह ये है कि मणिपुर के कानून के अनुसार सिर्फ आदिवासी समुदाय के ही लोग पहाड़ी इलाकों में बस सकते हैं। यानी अपना घर बनाकर जीवकोपार्जन कर सकते हैं। लेकिन बहुसंख्यक होने के बाद भी मैतई समुदाय पहाड़ में नहीं बस सकते हैं। मणिपुर के कुल क्षेत्रफल का लगभग 89% हिस्सा पहाड़ी है। यहां तीन समुदाय के लोग रहते हैं- मैतई, नागा, और कुकी। इनमें नागा और कुकी को आदिवासी समुदाय का दर्जा मिला हुआ है जबकि मैतई को गैर-आदिवासी का दर्जा प्राप्त है। जहां, मैतई हिंदू धर्म से संबंध रखते हैं, वहीं अधिकतर नागा और कुकी ईसाई धर्म से संबंधित हैं।
8 जिलों में फैली हिंसा, धारा 144 लागू
मणिपुर के 8 जिले हिंसा की चपेट में आ गए हैं। जिसकी वजह से यहां धारा 144 के साथ-साथ राज्य में अगले 5 दिनों के लिए इंटरनेट सेवाएं भी बंद कर दी गई है। हिंसा प्रभावित जिलों में किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए असम राइफल्स की 34 और सेना की 9 कंपनियां तैनात कर दी गई हैं। वहीं, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सीएम बीरेन सिंह से फोन पर घटना की जानकारी ली और उन्होंने केंद्र की ओर से राज्य को हरसंभव मदद का भरोसा दिया। बढ़ते हिंसा पर काबू पाने के लिए हिंसा फैलाने वालों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए हैं।
पहाड़ी इलाकों में बसने की मांग
राज्य की कानून के अनुसार सिर्फ अनुसूचित जनजाति समुदाय के ही लोग पहाड़ी इलाकों में बस सकते हैं। इसलिए सालों से मैतई समुदाय के लोग अपना दर्जा अनुसूचित जाति से हटाकर अनुसूचित जनजाति करने की मांग कर रहे हैं, ताकि वे लोग भी पहाड़ी इलाकों में जाकर बस सकें। बताया जाता है कि यहां ‘कब्जे की जंग’ है। यानी मैतई समुदाय के लोग भी पहाड़ी इलाकों में बसने की मांग कर रहे हैं।
मैतई समुदाय के लोगों की संख्या 53%
राज्य में मैतई समुदाय के लोगों की संख्या 53% है, जबकि 40% नागा और कुकी लोग हैं। 7 फीसदी लोग अन्य समुदाय जैसे कि मयांग हैं, जो देश के अन्य भागों से आकर यहां बसे हुए हैं। मयांग समुदाय के लोग जो मुस्लिम धर्म से संबंध रखते हैं। राज्य का 90 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ी है। जहां मैतई समुदाय के लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त है, तो ये जनजाति इन पहाड़ी इलाकों में अपना घर बनाकर बस नहीं सकती है।
8 जिलों में कर्फ्यू, इंटरनेट सेवाएं भी निलंबित
स्थिति को देखते हुए गैर-आदिवासी बहुल इंफाल पश्चिम, काकचिंग, थौबल, जिरिबाम और बिष्णुपुर जिलों और आदिवासी बहुल चुराचांदपुर, कांगपोकपी और तेंगनौपाल जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है। राज्यभर में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को तत्काल प्रभाव से पांच दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया है, लेकिन ब्रॉडबैंड सेवाएं चालू है।